प्रतिक्रिया : अनिल भारद्वाज, गीतकार एवं एडवोकेट, उच्च न्यायालय ग्वालियर
वरिष्ठ और श्रेष्ठ गीतकार पुरोहितजी, आपके तीनों गीत पढ़े। तीनों गीत शानदार होकर गीत की गरिमा का स्वर्ण मुकुट धारण किए हुए लगते हैं। प्रथम गीत मैं रहूं न रहूं, मेरे गीत रहेंगे-गीतकार की अजर अमर आत्मा का प्रतीक है। इस गीत में ‘शब्दों की सरगम’ और ‘जीवन के पनघट पर’ गीत साहित्य के नवीनतम प्रयोग हैं। द्वितीय गीत -सिर्फ यह गम ये नगमे मेरे हैं, इस गीत की श्रेष्ठ पंक्तियां मैं मरा पहले से ए खुदा क्या तुम मुझे बुलाओगे… जीवन के संघर्ष का एक सजीव चित्रण है। गीतकार ने अपने हृदय की सारी संवेदनाओं को सोने के काव्य कलश में रख कर साहित्य जगत को परोसा है। तृतीय गीत- बिन बंदगी जिंदगी जिए जा रहे हैं- इस गीत में जीने का अंदाज, लयात्मक और काव्यात्मक प्रस्तुति है । गीत की उत्कृष्ट पंक्तियां जिसको मनाना था उससे रूठे हैं दुनिया तेरे दस्तूर अनूठे हैं यह गीत श्रेष्ठता की धरातल पर परिपक्व गीत है। इतने सुंदर गीतों के रचनाकार और सम्मानित गीतकार दिलीप पुरोहितजी को और उसकी गीतों को सादर नमन।