पूंछ हिलाऊ प्रशासन और निकम्मी सरकारों ने जैसलमेर के पर्यटन का दोहन किया, मगर इसकी सुध नहीं ली और विश्व प्रसिद्ध जैसलमेर अपने हाल पर आंसू बहा रहा है
जैसलमेर से महेश व्यास की खास रिपोर्ट
स्वर्ण नगरी विचार मंच जैसलमेर ने 8 जनवरी 2024 को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को एक पत्र लिखा था। इस पत्र में जैसलमेर के सोनार किले सहित विभिन्न ऐतिहासिक, सांस्कृतिक, स्थापत्य कला और पुरामहत्व की संपदा पर मंडरा रहे खतरे की ओर प्रधानमंत्री का ध्यान आकर्षित किया गया था। मगर सात माह बीत जाने के बाद भी एक्शन नहीं लेने का नतीजा यह हुआ कि दो-तीन दिन पहले तेज बारिश में सोनार किले की दीवार और किले के भीतर एक मकान की छत भरभरा कर गिर पड़ी। यह तो गनीमत रही कि जन हानि नहीं हुई। मगर सवाल अपनी जगह कायम है। क्या सरकार और प्रशासन हादसों के बाद ही एक्टिव होती है? क्या दुनिया भर की आंखों का नूर जैसलमेर की ओर अब भी सरकार ध्यान नहीं देगी?
पिछले तीन दशकों से जैसलमेर भारत का प्रमुख पर्यटन स्थल बना हुआ है। हर साल दो से तीन लाख सैलानी जैसलमेर भ्रमण पर आते हैं। इसमें देशी-विदेशी पर्यटक दोनों शामिल है। जैसलमेर का प्रमुख व्यवसाय भी पर्यटन होता जा रहा है। इसका उदाहरण है पिछले तीन दशकों में यहां बढ़ी होटलों और रेस्टोरेंट का जाल। गली-गली में पर्यटन से संबंधित दुकानें खुल गई है। हैंडीक्राफ्ट, एम्पोरियम और नमकीन-मिठाई के साथ यहां की कला से संबंधित दुकानें पर्यटन को बढ़ावा दे रही है। अब जैसलमेर पीछे मुड़कर देखने वाला नहीं है। यहां पर्यटन पूरी तरह विकसित होता जा रहा है। लेकिन सरकार और प्रशासन से जैसलमेर को किसी प्रकार का कोई सहयोग नहीं मिल रहा है। यहां पूंछ हिलाऊ प्रशासन नाकारा सिद्ध होता जा रहा है। पिछले तीन दशकों में सरकारों ने भी जैसलमेर की ओर खास ध्यान नहीं दिया। पूर्व में भाजपा सरकार के मुखिया मुख्यमंत्री रह चुके भैरोसिंह शेखावत ने मरू महोत्सव का आगाज कर जैसलमेर में पर्यटन को बढ़ावा देने का प्रयास किया था। धीरे-धीरे मरु मेला भी रस्म अदायगी बन कर रह गया। ना तो मेले मे कोई इनोवेशन होता है और ना ही मेले से स्थानीय कलाकारों और स्थानीय पब्लिक का जुड़ाव रहता है। कुल मिलाकर जैसलमेर के पर्यटन का यहां के प्रशासन और सरकार ने दोहन तो किया मगर जैसलमेर के विकास की तरफ ध्यान नहीं दिया, जिसका नतीजा यह हुआ कि यहां की संपदा नष्ट और जर्जर होती जा रही है और जैसलमेर के लोग अपने को ठगा हुआ महसूस कर रहे हैं। आइए जानते हैं जैसलमेर में पुरा संपदा की स्थिति क्या है-
1-बड़ाबाग की छतरियां
बड़ाबाग की छतरियां अपने हाल पर आंसू बहा रही है। जैसलमेर के पूर्व महारावल बृजराज सिंह अब इस दुनिया में नहीं है। मगर उन्होंने अपने स्तर पर छतरियों की कुछ मरम्मत करवाई थी। मगर सरकार की ओर से सहयोग नहीं मिलने से ये ऐतिहासिक छतरियां जर्जर हो गई हैं। यहां आने वाले पर्यटकों को भी निराशा हाथ लग रही है। स्वर्ण नगरी विचार मंच ने अपने पत्र में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को बडाबाग की छतरियों की ओर ध्यान आकर्षित करवाया था, मगर मोदी ने भी इस ओर ध्यान नहीं दिया। प्रधानमंत्री होने के नाते जैसलमेर के पर्यटन उद्योग को बढ़ावा देने की बजाय इस दिशा में एक्शन नहीं लिया गया। ये छतरियां राजाओं के काल की है और इसकी स्थापत्थ्य कला देखते ही बनती है। राजाओं की समृद्ध विरासत का दिग्दर्शन कराने वाली बड़ाबाग की छतरियों की मरम्मत नहीं करवाई गई तो पर्यटन के साथ खिलवाड़ तो होगा ही साथ ही यहां की विरासत पर भी संकट खड़ा हो जाएगा।
2. किले की हवेलियां, कंवरपदा, खेतपालिया हवेली, बुर्ज
जैसलमेर के 850 साल से अधिक पुराने सोनार किले की हवेलियां अपने वैभव को अपने में समेटे हुए हैं। इसका प्राचीन और ऐतिहासिक महत्व है। राजाओं की समृद्धि की गौरवगाथा कहने वाली ये हवेलियां जर्जर और जीर्णशीर्ण हालत में पहुंच चुकी है। इसकी ओर कोई ध्यान नहीं दे रहा है। स्वर्ण नगरी विचार मंच के पत्र पर भी प्रधानमंत्री ने ध्यान नहीं दिया। ये हवेलियां राजाओं के काल से अपनी समृद्धि का दिग्दर्शन करवा रही है। पूर्व में भी कई बार इसके संरक्षण की आवाज उठाई गई, मगर सरकार और प्रशासन ने हमेशा उपेक्षा ही की। कंवरपदा और खेतपालिया की हवेली की जर्जर हालत की ओर कई बार ध्यान आकर्षित किया गया, मगर प्रशासन ने ध्यान नहीं दिया और परिणाम यह हुआ कि बारिश में एक हवेली की छत गिर गई। यही नहीं हादसे के तीन दिन बाद भी सरकार और प्रशासन गंभीर नहीं हुई है। किले के लोग चीख-चिल्ला रहे हैं मगर जैसलमर में प्रशासन नाम की कोई चीज ही नहीं है जो सुनवाई करे। केंद्रीय पर्यटन और संस्कृति मंत्री गजेंद्रसिंह शेखावत को भी इस ओर ध्यान देना चाहिए मगर उनकी भी कोई प्रतिक्रिया नहीं आई। कुल मिलाकर जैसलमेर के पर्यटन उद्योग और यहां की विरासत की उपेक्षा की जा रही है।
3-मोहतासर बुर्ज, तालाब, पठियालें
इसी तरह प्रधानमंत्री को लिखे पत्र में मोहतासर बुर्ज की ओर तथा तालाब व पठियालों की ओर भी ध्यान दिलाया गया। ये बुर्ज काफी महत्वपूर्ण है और इसकी कारीगरी कमाल की है। लेकिन अफसोस पुरातत्व विभाग भी इस ओर ध्यान नहीं दे रहा है। प्रशासन तो हमेशा की तरह उपेक्षा किए हुए हैं। मोहतासर बुर्ज के महत्व को देखते हुए समय-समय पर आवाज उठाई गई, मगर किसी ने सुध नहीं ली। तालाब और पठियालें अपनी दुर्दशा पर आंसू बहा रहे हैं, मगर कोई सुनने वाला नहीं है।
4-रामकुंडा
आध्यात्मिक और सांस्कृतिक विरासत का प्रतीक रामकुंडा अपने चमत्कार के लिए प्रसिद्ध है वहीं जन-जन की लोकआस्था का प्रमुख केंद्र है। रामकुंडा जिसे रामजी से जोड़कर देखा जाता है अपने नाम के अनुरूप महत्वपूर्ण है। मगर अफसोस प्रशासन इस ओर ध्यान नहीं दे रहा है। प्राचीन विरासत का दिग्दर्शन कराने वाला रामकुंडा अपने हाल पर बेबस है कोई सुनने वाला नहीं है। रामकुंडा के चारों ओर झाड़ियां उग आई है और धीरे-धीरे जर्जर होता जा रहा है। यहां पर भी पर्यटक घूमते-घूमते पहुंच जाते हैं। पर्यटकों को जब इसके ऐतिहासिक महत्व से अवगत करवाया जाता है तो वे भी अभिभूत हो जाते हैं। जैसलमेर में रामकुंडा अपनी पवित्रता के लिए प्रसिद्ध है और जैसलमेर वासी थोड़ी बारिश होते ही रामकुंडा पहुंच जाते हैं। यहां पर तीज-त्योहारों पर रोनक रहती है। मगर इस ओर प्रशासन का ध्यान नहीं देने से यह विरासत भी उपेक्षित हो रही है।
5-शहरी एवं ग्रामीण छतरियां
जैसलमेर के आस-पास और पूरे जैसलमेर के ग्रामीण इलाकों में सैकड़ों छतरियां है। इन छतरियों पर शिलालेख टूट चुके हैं। छतरियों के कंगूरे लोग तोड़कर ले गए तो कुछ भग्न होकर गिर गए। इन ऐतिहासिक छतरियों की उपेक्षा करने से जैसलमेर के इतिहास पर भी संकट गहरा गया है। इन छतरियों के आसपास शिलालेख भी थे जो जैसलमेर के इतिहास की समृद्धि की कहानी कहते थे। मगर प्रशासन और सरकार ने ध्यान नहीं दिया जिससे लोग यहां छतरियों के पत्थर ले गए और छतरियां कई तो पूरी तरह विलुप्त ही हो गई। अब भी समय है प्रशासन और सरकार चेत जाए नहीं तो सैकड़ों की संख्या में बिखरी जीर्ण-शीर्ण छतरियों का भी नामोनिशान मिट जाएगा।
6-कुएं व बावड़ियां
जैसलमेर में हमेशा अकाल पड़ता आया है। नहर आने के बाद कई इलाकों में पेड़ पौधे पनपे और हरियाली आच्छादित होने से बारिश होने लगी है। एक समय ऐसा था जब यहां आंधियां चलती रहती थी और आए साल अकाल ही पड़ता था। तब जैसलमेर के सेठ-साहुकारों और राजाओं ने शहरों से लेकर गांव-ढाणियों तक कुएं और बावड़ियां बनाई थी। लेकिन ये कुएं और बावड़ियां देखरेख और मरम्मत के अभाव में जर्जर होती गई और आज इनका कोई नाम लेने वाला नहीं है। प्राचीन काल से ही ये कुएं और बावड़ियां ही स्थानीय लोगों की प्यास बुझाते थे। अब तो नहर का पानी आ गया। मगर प्राचीन काल में यही पानी का महत्वपूर्ण साधन था। इनकी ओर ध्यान नहीं देने से विरासत खतरे में पड़ गई है। पर्यटन की दृष्टि से भी कई बावड़ियां महत्वपूर्ण है। सरकार और प्रशासन को अभी से इसकी सुध लेनी चाहिए।
7-दीवान सालिमसिंह हवेली
दीवान सालिमसिंह कला प्रेमी था। उसके द्वारा बनाई यह हवेली ऐतिहासिक है और कई कहानियां अपने भीतर समेटे हुए हैं। इस किले का ऊपरी भाग 1995 में आई तेज बारिश से गिर गया था और उसके बाद से हवेली की मरम्मत नहीं हुई। यह हवेली आज भी उपेक्षित है। दीवान सालिमसिंह की हवेली बेहद सुंदर और दर्शनीय स्थल है। जैसलमेर आने वाले सैलानियों को यह खूब लुभाती है। मगर टूटने के बाद न तो इस हवेली की छत की रिपेयर हुई और न ही इस हवेली की सुध ली गई। तीन दशक के बाद भी यह हवेली आज भी उपेक्षित है।
8-किले की प्रोल
किले की प्रोल भी काफी जर्जर हो चुकी है। यहां किले में आने वाले वाहनों से कभी भी इसे नुकसान पहुंच सकता है। यहां ट्रैफिक का हमेशा दबाव रहता है। मगर प्रशासन ने इस ओर ध्यान नहीं दिया। स्वर्ण नगरी विचार मंच ने प्रशासन को कई पत्र लिखे लेकिन किसी प्रकार की कार्रवाई नहीं की गई। किले की प्रोल राजाओं के विरासत की कहानियां अपने में समेटे हुए हैं। ये प्रोल ही किले में आवागमन का मुख्य साधन है। किले की यह प्रोल जर्जर होने से कभी भी हादसा हो सकता है।
9-शहर परकोटे की चार प्रोल
शहर का परकोटा पूरी तरह अतिक्रमण का शिकार होकर टूट चुका है। यहां अप परकोटे के निशान ही रह गए हैँ। शहर परकोटे की चार प्रोल जर्जर हो गई है। इन प्रोल की सुध लेने की कोशिश नहीं की गई। किशनघाटन की प्रोल, अमरसागर प्रोल और अन्य प्रोलों की सुध नहीं लेने का नतीजा यह निकला की इसकी हालत जर्जर होकर बद से बदतर होती जा रही है। किशनघाट प्रोल तो कभी भी भरभराकर गिर सकती है। लेकिन प्रशासन और सरकार ने इस ओर ध्यान नहीं दिया है। स्वर्ण नगरी विचार मंच ने कई बार कई मंचों पर यह आवाज उठाई, मगर उसे महत्व नहीं दिया गया।
10-गड़ीसर तालाब व आगौर
जैसलमेर का विश्व प्रसिद्ध तालाब अपनी दुर्दशा पर आंसू बहा रहा है। महारावल गड़सी द्वारा निर्मित यह तालाब वर्षों पूर्व जैसलमेर की आबादी की प्यास बुझाता था। कालांतर में नहर आने के बाद इसकी उपेक्षा होती गई। तालाब की आगौर में अतिक्रमण होते गए और इस तालाब की हत्या हो गई। रही सही कसर यहां नौकायन शुरू करके हो गई। तालाब पूरा काई और कचरे से अटा हुआ है। तालाब के चारों तरफ गंदगी पसरी हुई है। जैसलमेर के लोगों की उदासीनता के चलते एक तालाब की असमय हत्या हो गई और जैसलमेर के लोग देखते रहे। किसी ने उफ तक नहीं की। किसी ने आवाज नहीं उठाई। बस जैसलमेर के इस तालाब का पर्यटन की दृष्टि से दोहन किया जाता रहा। तालाब के चारों ओर अतिक्रमण हाे चुके हैं और अब तो तालाब ने अपनी मूल पहचान ही खो दी है। जमीनों की कीमतें आसमान छू रही है और किले के चारों तरफ रसूख वाले लोगों ने अतिक्रमण कर लिए। इन अतिक्रमणों को जनप्रतिनिधियों ने भी प्रश्रय दिया और कोई बोलने वाला नहीं है। प्रशासन भी इस दिशा में कुछ नहीं कर पाया। एक तालाब की पवित्रता तो नष्ट हुई पूरा तालाब नष्ट होने की ओर अग्रसर है।
11-जोशीड़ा तालाब
जोशीड़ा तालाब प्राचीन काल से लोगों की प्यास बुझाता रहा है। यह तालाब भी अतिक्रमण का शिकार हो गया। स्वर्ण नगरी विचार मंच ने कई बार प्रशासन का ध्यान आकर्षित किया, मगर किसी भी कलेक्टर ने इस ओर ध्यान नहीं दिया। नतीजा यह हुआ कि तालाब में अब पानी ठहरता ही नहीं है। अतिक्रमण ने तालाब की असमय हत्या कर दी है।
12-वैशाखी के विभिन्न कुंड व छतरी
वैशाख पूर्णिमा पर यहां मेला लगता है। आध्यात्मिक दृष्टि से वैशाखी महत्वपूर्ण स्थल है। यहां पर विभिन्न कुंड और छतरियां बनी हुई है। मगर निरंतर उपेक्षा ने इसकी भी कमर तोड़ दी है। लोगों ने इस ओर ध्यान नहीं दिया और देखते ही देखते वैशाखी को विष बेल ने जकड़ लिया। इसकी दुर्दशा के खुद जैसलमेर के लोग जिम्मेदार है जिन्होंने कभी आवाज नहीं उठाई। वैशाखी पर कभी ऋषि-मुनियों ने तपस्या की थी और यह तपोभूमि मानी गई है, मगर आज इसकी जितनी उपेक्षा हो रही है उससे लगता है कि सरकार बिलकुद भी गंभीर नहीं है।
12-विभिन्न स्थानों पर बनी पठियालें
जैसलमेर के चारों तरफ कई स्थानों पर पठियालें बनी हुई है। विभिन्न समाजों की इन पठियालों को भी ग्रहण लग गया है। लगातार उपेक्षा से पठियालों की सुध नहीं ली गई और आज ये पठियालें हमारी विरासत की अंतिम सांसे गिन रही है। अभी से इस ओर ध्यान देने की जरूरत है। जैसलमेर के विभिन्न समाज के भामाशाहों का आगे आकर इन पठियालों की मरम्मत करवानी होगी और प्रशासन और सरकार के भरोसे न रहकर अपने स्तर पर सुध लेनी होगी।
13-घोटारू, लाठी व किशनगढ़ के किले
घोटारू, लाठी और किशनगढ़ के किले अब जर्जर हो गए हैं। गांवों में भी किले हो सकते हैं, इसको साबित किया है जैसलमेर ने। जैसलमेर के इन गांवों में राजाओं के समय से ये किले बने हुए हैँ। घोटारू का किला आज भी अपनी विरासत का दिग्दर्शन करवाता है। लाठी और किशनगढ़ के किले की भी सुध नहीं ली गई। प्रशासन और सरकार को इस ओर ध्यान देना चाहिए ताकि गांवों में विरासत को बचाया जा सके।
12-पोकरण की पुरा संपदा
पोकरण जैसलमेर का प्रवेश द्वार है। पहले पोकरण आता है और उसके बाद 120 किलोमीटर दूर जैसलमेर आता है। जैसलमेर की तरह पोकरण में भी कई पर्यटन स्थल है। लाल पत्थरों का शहर पोकरण में किला महत्वपूर्ण है वहीं कई पर्यटन स्थल है। पोकरण के समीप ही बाबा रामदेव का मंदिर है। रामदेवरा मेले में हर साल लाखों लोग दर्शन करने आते हैं। सितंबर में लगने वाले मेले में इस बार भी 25 से 30 लाख लोग दर्शन करेंगे। इतने महत्वपूर्ण स्थल की प्रशासन और सरकार की उपेक्षा का सामना करना पड़ रहा है। पोकरण को भी पर्यटन की दृष्टि से डेवलेप किया जा सकता है, मगर इस दिशा में निरंतर उपेक्षा की गई। पोकरण को पृथक से जिला बनाने की मांग भी लोगों ने की, मगर जनप्रतिनिधियों की उपेक्षा के चलते पोकरण जिला नहीं बन पाया। यहां की पुरा संपदा को बचाने की जरूरत है। अगर अभी भी ध्यान नहीं दिया तो पोकरण की विरासत संकट में पड़ जाएगी।
