जिनका कोई गॉडफादर नहीं उन्हें नहीं मिलता कलेक्टर का प्रशंसा पत्र
डीके पुरोहित. जोधपुर
अगर आपको जिला कलेक्टरों का 15 अगस्त या 26 जनवरी पर प्रशंसा पत्र चाहिए तो आपका गॉड फादर होना बहुत जरूरी है। आप कितना ही अच्छा काम कर लो मगर जरूरी नहीं कि कलेक्टर की नजर आपके काम पर पड़े। ऐसा ही कुछ उस विक्रम के साथ हुआ जो मरकर भी अपने ऑर्गन डोनेट कर चार लोगाें को जिंदगी दे गया, मगर जोधपुर के निकम्मे उस जिला कलेक्टर गौरव अग्रवाल ने प्रशंसा पत्र तक के लिए चयन नहीं किया जो खुद जयपुर में सम्मानित हो रहा है। मुबारक हो सरकार ऐसे कलेक्टरों को सम्मानित करने के लिए। हम फिर किसी मौके पर गौरव अग्रवाल की उपलब्धियों का कच्चा चिट्ठा खोलेंगे मगर अभी मुद्दा एक ऐसे व्यक्ति को प्रशंसा पत्र नहीं देने का है जिसने अपनी जान के बाद भी लोगों को जिंदगी दी। उसके परिजनों को केवल इसलिए प्रशंसा पत्र विक्रम के लिए नहीं मिला क्योंकि उसका कोई गॉड फादर नहीं था।
कांग्रेस के युवा लीडर पुखराज प्रजापति ने बताया कि उन्होंने जिला कलेक्टर को जोधपुर के प्रथम अंगदाता विक्रम पुत्र रमेश आचू का नाम 15 अगस्त पर प्रशंसा पत्र देने के लिए प्रस्तावित किया था जिसने मरकर भी चार लोगों को नई जिंदगी दी थी। मगर अफसोस ऐसे व्यक्ति को भी जिला कलेक्टर ने प्रशंसा पत्र के योग्य भी नहीं समझा। जिसने चार लोगों को जीवनदान दिया और समाजसेवा में अनुकरणीय उदाहरण पेश किया।
रमेश कुमार आचू पुत्र लाखाराम (जाति सुथार) निवास सागर नगर पाल शिल्पग्राम,जिला जोधपुर राजस्थान के निवासी है। उनके पुत्र विक्रम सुथार की सड़क दुर्घटना में ब्रेन डेड होने पर जोधपुर एम्स में पूरे राजस्थान का पहला पुत्र की मृत्यु उपरांत अंगदान करने का सराहनीय कार्य कर एक पल की गई। जो कि मानवीय जीवन में एक बहुत बड़ा उदाहरण है। समाजसेवा में इससे बड़ी समाज सेवा कोई हो ही नहीं सकती। लेकिन आज विडंबना है कि जिला प्रशासन जोधपुर द्वारा जारी सामाजिक सेवा के क्षेत्र में प्रशंसा पत्र दिए जाने के क्रम में जिनका नाम नहीं है, जबकि इनका नाम प्रस्ताव में भिजवाया गया था और वो भी राजनीति की भेंट चढ़ गया। उनके परिवार को प्रमुखतया मानवता के आधार पर सर्वप्रथम सामाजिक सेवा के लिए जिला प्रशासन द्वारा सम्मानित किया जाना चाहिए, लेकिन आज जारी लिस्ट में नाम नहीं होना दुर्भाग्यपूर्ण है। जबकि इस संबंध में जिला कलेक्टर जोधपुर को भी अवगत करवाया जा चुका है।
राइजिंग भास्कर विचार : प्रशंसा पत्र एक नौटंकी से अधिक कुछ नहीं, इसे बंद करें
राइजिंग भास्कर का मानना है कि जिला कलेक्टरों द्वारा दिया जाने वाला 15 अगस्त और 26 जनवरी पर प्रशंसा पत्र नौटंकी से अतिरिक्त कुछ नहीं है। ऐसे अधिकारियों को पुरस्कार दिया जाता है जो कलेक्टर की गुडबुक में रहते हैं। दो चार सही लोगों को प्रशंसा पत्र मिलता है बाकी ऐसे लोगों को प्रशंसा पत्र मिलता है जिनका कोई न कोई गॉड फादर होता है। आज से कुछ साल पहले इस रिपोर्टर को जैसलमेर में दैनिक भास्कर के ब्यूरो चीफ ने ऐनवक्त पर फोन करके प्रशंसा पत्र दिलाया था। तभी से हमें समझ मे आ गया था कि प्रशंसा पत्र आपको कितनी आसानी से मिल सकता है, अगर आपका कोई गॉड फादर हो..। मजे की बात है कि जिस कलेक्टर गौरव अग्रवाल ने जोधपुर के प्रथम अंगदाता विक्रम को प्रशंसा पत्र के योग्य नहीं समझा उन्हें जयपुर में सम्मानित किया गया। ऐसे कलेक्टरों का ही यशोगान होता है जो योग्यता के नाम पर जीरो और केवल जीरो होते हैं। जोधपुर में उन्होंने अपनी सफलता के क्या झंडे गाड़े हैं वो किसी से छिपे हुए नहीं है और हम फिर किसी मंच पर उसे उजागर करेंगे। मगर आज मुद्दा इन प्रशंसा पत्रों का है तो कहना चाहेंगे कि ये प्रशंसा पत्र राजनीतिक और दबंग लोगों की रहमोकरम से मिलते हैं। कई ऐसे लोग हैं जो बार-बार सम्मानित हो रहे हैं और कई ऐसे लोग हैं जिनकी प्रतिभा को कोई पूछता नहीं है। कलेक्टरों बंद करो ये नौटंकी। तुम्हारी लिस्ट में कैसे कैसे लोगों को प्रशंसा पत्र मिल जाते हैं, वो बात किसी से छिपी हुई नहीं है और आज विक्रम जैसे व्यक्ति की अनदेखी कर साबित भी कर दिया। मुबारक हो गौरव अग्रवाल आपकी चयन प्रक्रिया पर। कौन सवाल उठाए- ब्यूरोक्रेसी पर। आज ब्यूरोक्रेसी प्रदेश और देश को चला रही है। नेताओं का अपना कोई विजन ही नहीं है। ऐसे देश-प्रदेश में प्रशंसा पत्र ऐसे ही मिलेंगे। मुबारक हो।
