(प्रख्यात जैन संत परमपूज्य पंकजप्रभु महाराज का चातुर्मास 17 जुलाई से एक अज्ञात स्थान पर अपने आश्रम में शुरू हुआ था। 17 जुलाई से 2 अगस्त तक पंकजप्रभु महाराज ने विभिन्न विषयों पर प्रवचन दिए। पंकजप्रभु अपने चैतन्य से अवचेतन को मथने में लगे हैं। वे और संतों की तरह प्रवचन नहीं देते। उन्हें जो भी पात्र व्यक्ति लगता है उसे वे मानसिक तरंगों के जरिए प्रवचन देते हैं। उनके पास ऐसी विशिष्ट सिद्धियां हैं, जिससे वे मानव मात्र के हृदय की बात जान लेते हैं और उनसे संवाद करने लगते हैं। उनका मन से मन का कनेक्शन जुड़ जाता है और वे अपनी बात रखते हैं। वे किसी प्रकार का दिखावा नहीं करते। उनका असली स्वरूप आज तक किसी ने नहीं देखा। उनके शिष्यों ने भी उन्हें आज तक देखा नहीं है। क्योंकि वे अपने सारे शिष्यों को मानसिक संदेश के जरिए ही ज्ञान का झरना नि:सृत करते हैं। उनकी अंतिम बार जो तस्वीर हमें मिली थी उसी का हम बार-बार उपयोग कर रहे हैं क्योंकि स्वामीजी अपना परिचय जगत को फिलहाल देना नहीं चाहते। उनका कहना है कि जब उचित समय आएगा तब वे जगत को अपना स्वरूप दिखाएंगे। वे शिष्यों से घिरे नहीं रहते। वे साधना भी बिलकुल एकांत में करते हैं। वे क्या खाते हैं? क्या पीते हैं? किसी को नहीं पता। उनकी आयु कितनी है? उनका आश्रम कहां है? उनके गुरु कौन है? ऐसे कई सवाल हैं जो अभी तक रहस्य बने हुए हैं। जो तस्वीर हम इस आलेख के साथ प्रकाशित कर रहे हैं और अब तक प्रकाशित करते आए हैं एक विश्वास है कि गुरुदेव का इस रूप में हमने दर्शन किया है। लेकिन हम दावे के साथ नहीं कह सकते हैं कि परम पूज्य पंकजप्रभु का यही स्वरूप हैं। बहरहाल गुरुदेव का हमसे मानसिक रूप से संपर्क जुड़ा है और वे जगत को जो प्रवचन देने जा रहे हैं उससे हूबहू रूबरू करवा रहे हैं। जैसा कि गुरुदेव ने कहा था कि वे चार महीने तक रोज एक शब्द को केंद्रित करते हुए प्रवचन देंगे। चूंकि गुरुदेव 3 अगस्त से 26 अगस्त तक 24 तीर्थंकरों की साधना में लीन थे इसलिए उनके प्रवचन नहीं हुए थे। आज 27 अगस्त को स्वामीजी ने फिर इमसे मानिसक रूप से संपर्क किया है और मानसिक तरंगों के जरिए प्रवचन दे रहे हैं। अंतिम बार 2 अगस्त को स्वामीजी ने ‘अंधकार’ शब्द पर प्रवचन दिए थे। आज स्वामीजी ‘साधना’ शब्द पर अपने प्रवचन दे रहे हैं।)
गुरुदेव बोल रहे हैं-
साधना। ना बाबा ना…तीर्थंकर कहते हैं साध ना…हमने उस दिव्य शक्ति को ‘साधने’ की कोशिश की मगर वे ‘सधे’ नहीं। हालांकि हमें इस बात की निराशा नहीं है। क्योंकि परम शक्ति और वो परम तत्व मन से किए गए और शुद्ध भाव से की गई ‘साधना’ को भी स्वीकार करके ‘सध’ जाते हैं। जहां समर्पण होता है वहां साधना सफल होती है। मगर हमने 24 दिनों में 24 तीर्थंकरों की साधना में जाने के बाद और साधना पूरी करने के बाद यह आत्म चेतना प्राप्त की है कि जिसे हम ‘साधना’ कहते हैं, वह शब्द ही गलत है। श्रीकृष्ण कहते हैं मुझे कोई साध नहीं सकता, मुझे ‘समर्पण’ से पाया जा सकता है, इसलिए साधना नहीं समर्पण करो…हे मनुष्य साध ना, तपस्या करो, समर्पण करो…।
आज मैं 24 दिनों की साध ना का सार बताता हूं। हे मनुष्य…24 तीर्थंकर क्या है? दिन और रात मिलकर यानी 24 घंटे मिलकर एक दिन पूरा होता है। यानी 24 तीर्थंकर ही एक दिन है। एक पूरी सृष्टि ही 24 तीर्थंकर है। एक पूरा ब्रह़्मांड ही 24 तीर्थंकर है। इस ब्रहमांड में भी 24 ब्रह्मांड है। सभी तीर्थंकरों के हिस्से एक-एक ब्रह्मांड है। उन 24 ब्रह्मांडों में भी 24 मल्टी ब्रह्मांड है। 24 तीर्थंकर केवल अंकों में 24 है और हकीकत में वे एक दिन की तरह है। दिन और रात दो स्थितियां हैं। जिस तरह से शरीर और आत्मा। दिन शरीर है। रात आत्मा। आत्मा को रात में भी खोजा जा सकता है। अंधकार में ही सृजन होता है। योगेश्वर श्रीकृष्ण का जन्म अंधकार में हुआ। अंधकार में ही बीज का अंकुरण होता है। धरती में बीज हमेशा अंधकार में प्रस्फुटित होता है। अंधकार आत्मा है और शरीर प्रकाश। हमारे मनीषियों ने इसका उल्टा ढूंढा। हमारे मनीषियों ने शरीर को अंधकार कहा और आत्मा को प्रकाश कहा। जबकि शरीर प्रकाश है यानी शरीर दिन है और आत्मा अंधकार है यानी रात है।
आत्मा अंधकार कैसे है? आत्मा को किसी ने नहीं देखा। अंधेरे को किसी ने नहीं देखा। इसलिए न आत्मा को देखा जा सकता और न अंधकार को। अंधकार में ही आत्मा का वास होता है। यहां यह गौर करने वाली बात है। आत्मा में अंधकार का वास नहीं होता बल्कि अंधकार में आत्मा का वास होता है। हे मनुष्य तुम सोच रहे होंगे कि यह कौनसी थ्योरी बताई जा रही है? यह कौनसा सिद्धांत बताया जा रहा है? यह सिद्धांत है अध्यात्म की खोज का। इसे पंकज प्रभु ने खोजा है। अपने आपको 24 तीर्थंकरों को समर्पित कर। इन 24 दिनों में पंकज प्रभु ने 24 अनंत ब्रह्मांड और उन 24 अनंत ब्रह्मांड में 24 मल्टी ब्रहमांड में भ्रमण किया। अब मैं बताता हूं उन सभी ब्रह्मांड और मल्टी ब्रह्मांड में क्या है?
हे मानव आपने सपने देखे होंगे। आप सपनों में जो देखते हो वो सब हमारे यूनिवर्स और मल्टी यूनिवर्स में पहले से ही घटित है। कोई भी सपना हमारे यूनिवर्स और मल्टी यूनिवर्स से बाहर का हो ही नहीं सकता। जो श्रीकृष्ण तत्व है उसमें ये सभी 24 तीर्थंकर, 24 ब्रह्मांड, 24 मल्टी ब्रह्मांड समाहित है। और ये सभी एक गुरु में समाहित है। और वो गुरु है स्वामी डम डम डीकानंद। हे मानव, ये कोई कहानी नहीं है। इसे मैंने अंधकार में खोजा है। मैं इस समय अंधकार में ही प्रवचन दे रहा हूं। इस समय रात के 3:25 हो रहे हैं। तुम श्रीकृष्ण जन्म का जश्न मना चुके हो। मैं तो श्रीकृष्ण के साथ ही उनकी आत्मा में ही विराजमान हूं। इस बार प्रवचन मैं नहीं स्वयं श्रीकृष्ण दे रहे हैं। तो हे मानव सुनो, श्रीकृष्ण हमेशा अंधकार में ही प्रकट होते हैं। वे श्याम वर्ण है। अंधकार जब गहरा होता जाता है तभी प्रकाश का जन्म होता है। प्रकाश और अंधकार की कहानी में पहले अंधकार आया और बाद में प्रकाश। पूरे ब्रह्मांड में। पूरे मल्टी ब्रहमांड में सबसे पहले अंधकार ही था। अंधकार से ही प्रकाश की उत्पत्ति हुई। आज भी ब्रह्मांड में अंधकार और प्रकाश दोनों है। मैंने जब 24 तीर्थंकरों को अपने आपको समर्पित किया तो ऐसा लगा जैसे 24 तीर्थ कर लिए हो। मुझे नहीं पता इस धरती पर कितने तीर्थ है। मगर मुझे 24 तीर्थंकरों ने कहा कि इस धरती पर 24 तीर्थ है। इन 24 तीर्थों के नाम तो मुझे भी नहीं पता मगर 24 तीर्थ इस धरती पर है तभी तो 24 तीर्थंकरों ने कहा है। तुम खोजो। तुम अपना दिमाग लगाओ और उन 24 तीर्थों को पवित्र मानकर उसके प्रति समर्पित हो जाओ। आज से साधना शब्द का इस्तेमाल नहीं करना। उसकी जगह तपस्या शब्द का इस्तेमाल करना। तपस्या से समर्पण का भाव प्रकट होता है। साधना से अहंकार का भाव प्रकट होता है। मैं गया तो साधना करने ही था, मगर मुझे श्रीकृष्ण ने बताया कि तुमने 24 तीर्थंकरों की तरह साधना की, अब तुम समर्पण करो तो मैं तुम्हारे 24 तीर्थंकरों की ताकत का रहस्य बताऊंगा। मैंने श्रीकृष्ण को समर्पित कर दिया। उन्होंने कहा कि 24 तीर्थंकर ही इस जगत में दिन और रात यानी 24 घंटे हमारे परिवेश में रहते हैं। दिन और रात हमारे बीच जो ताकत विद्यमान है वो 24 तीर्थंकर ही है। इन 24 तीर्थंकरों के बिना दिन और रात संभव ही नहीं है।
हे मानव, श्रीकृष्ण जिस पर प्रेम बरसाते हैं उसे सबकुछ दे देते हैं। श्रीकृष्ण ने 24 तीर्थंकरों को सबकुछ दे दिया है। जो श्रीकृष्ण का है वो सबकुछ इन 24 तीर्थंकरों का है। सभी 24 तीर्थकर अब दिन और रात हो गए हैं। न दिन खत्म हो सकता है और न ही रात। जब तक दिन रात रहेंगे तब तक 24 तीर्थंकर रहेंगे। दिन और रात का वरदान श्रीकृष्ण ने 24 तीर्थंकरों को दिया है।
इसलिए हे मानव अब इस सत्य को जान लो कि सत्य को कभी साधा नहीं जा सकता। सत्य को स्वीकार किया जाना चाहिए। सत्य के प्रति समर्पित होना चाहिए। सत्य ही शाश्वत है। शाश्वत ही श्रीकृष्ण है। श्रीकृष्ण ही परम तत्व है और परम तत्व ही परम गुरु है। और परमगुरु स्वामी डम डम डीकानंद है। यह कहानी स्वामी डम डम डीकानंद से शुरू होती है और कभी खत्म नहीं होगी। अनंत कहानी के अनंत पात्र आएंगे। मगर यह कहानी अनंत रहेगी। चाहे धरती रहे ना रहे यह कहानी अनंत ब्रह्मांडों में अनंत काल तक विचरण करेगी।
हे मानव साधना शब्द की बजाय समर्पण और तपस्या शब्द पर श्रीकृष्ण जोर देते हैं। उन्हें पाने के लिए समर्पण करना होगा। समर्पण करना होगा यानी अंधकार में जाना होगा। समर्पण अंधकार है। अंधकार का अर्थ अज्ञान नहीं है। प्रकाश का अर्थ पूर्ण ज्ञान भी नहीं है। प्रकाश और अंधकार दोनों मिलेंगे तभी ज्ञान होगा। केवल प्रकाश ज्ञान नहीं है और केवल अंधकार अज्ञान नहीं है। इसलिए अंधकार में जाना होगा। अंधकार में आत्मा है। आत्मा की खोज से पहले अंधकार की खोज करनी होगी। अंधकार की खोज करने के लिए अपने को समर्पित करना होगा। जब हम अपने को समर्पित कर देंगे यानी खुद अंधकार हो जाएंगे तो हमारे भीतर से प्रकाश फूटेगा। जब तीर्थंकर साधना कर रहे थे तो वे साधना करते गए और साधना करते गए। उन्होंने साधना तो की मगर पूरी तरह समर्पण नहीं किया। समर्पण करने वाले को साधना की जरूरत ही नहीं पड़ती। जरूरी नहीं कि आप ध्यान लगाओ। समर्पण तो किसी भी रूप में हो सकता है। प्रहलाद ने कौनसी साधना की थी। उसने तो अपने आपको नारायण को समर्पित कर दिया। प्रहलाद ने साधना नहीं की थी। प्रहलाद ने समर्पण किया था। साधना से कभी प्रभु को प्राप्त नहीं किया जा सकता। प्रभु को पाना है तो समर्पण करना होगा। हमारे 24 तीर्थंकरों ने साधना की थी। मगर सच्चे मन से और सच्चे भाव से की गई उनकी साधना से भी वह परम तत्व सध गया और 24 घंटे का विधान उनके नाम हो गया। दिन और रात यानी 24 घंटे 24 तीर्थंकरों के नाम हो गए। हर एक तीर्थंकर एक घंटा है। ये 24 घंटे ही 24 तीर्थंकर है। इसलिए हे मानव साधना पर अब तक तुम्हें बताया। मैंने साधना की बजाय अपने को 24 तीर्थंकरों को समर्पित कर दिया। जो जो प्राणी अपने आपको श्रीकृष्ण को समर्पित कर देगा, वह श्रीकृष्ण का स्नेह प्राप्त कर सकेगा। और आज जन्माष्टमी पर यही आपको मंत्र देता हूं। कोई मंत्र साधना मत करो। बस अपने आपको प्रभु को, किसी भी परम तत्व को, जिसे तुम मानते हो, उसे अपने आपको समर्पित कर दो। यही असली तपस्या है। इसलिए साधना नहीं समर्पण जरूरी है। यही सत्य की खोज है।
