शिव वर्मा. जोधपुर
वत्स द्वादशी (बच्छ बारस) का पर्व है शुक्रवार को मनाया जाएगा। राजस्थान एवं बृज सहित उत्तर-भारत के अधिकांश भागों में इस दिन माताएं बछड़े सहित गाय का पूजन करती हैं और अपने पुत्र की दीर्घायु हेतु व्रत रखती हैं।
ऐसी मान्यता है कि इस दिन गाय के दूध पर उसके बछड़े का अधिकार होता है अतः गाय के दूध का सेवन नहीं किया जाता।
चाकू से काटी सब्जियां भी नहीं खायी जाती, गेहूं के आटे का उपयोग नहीं किया जाता अतः मक्की अथवा बाजरे की रोटी खायी जाती है। मूंग-चांवल, अनारदाना की कढ़ी, चना-चांवल मुख्य रूप से खाए जाते हैं।
प्रातः सभी महिलाएं अपने पुत्रों के साथ सुन्दर लाल-पीले वस्त्र धारण कर अपने-अपने मोहल्ले में (जहां किसी गाय ने हाल ही में बछड़े को जन्म दिया हो) उस घर या गोशाला जाकर गाय और बछड़े की पूजा करती है और अपने पुत्र की दीर्घायु की कामना करती है।
गाय के गोबर में चांदी के सिक्के से पूजा की जाती है
गाय और बछड़े को अंकुरित मूंग-चने, बाजरे के लड्डू और नारियल भोग के रूप में खिलाये जाते हैं और अपने परिवार जनों को नारियल का प्रसाद दिया जाता है। गाय के गोबर में चांदी के सिक्के से पूजा भी की जाती है।
