शिव वर्मा. जोधपुर
श्री साधु मार्गी जैन परम्परा के राष्ट्रीय सन्त आचार्य रामेश की आज्ञानुवर्तीनी सुशिष्या पर्यायज्येष्ठा साध्वी प्रभातश्री ने पावटा बी रोड स्थित चौरडिया भवन में आज अपने प्रवचन में फरमाया कि अहिंसा ही परमो धर्म है। हम ऐसे धर्म का पालन कर रहे हैं जो अहिंसा का स्वरुप है। जो धर्म अहिंसा को अपना सर्वस्व मानता है, जिस धर्म में अहिंसा के सिद्धांतों की सूक्ष्म से सूक्ष्म जानकारी है। अहिंसा की परिभाषा हमारे मानस में इतनी स्पष्ट नहीं है, जितनी होनी चाहिए। सिर्फ जीवों की हिंसा नहीं करना ही अहिंसा नहीं है।अहिंसा कायिक यानी शरीर ही नही मानसिक और वाचिक रूप में भी होती है। हम किसी के शरीर को कष्ट दें तो भी हिंसा है, हम अपने कठोर वचनों से प्रताड़ित करें, किसी के प्रति द्वेष भाव रखें यानी हमारे मन के दूषित भाव, हमारे कष्टदायक वचन भी हिंसा की श्रेणी में आते हैं। समता भवन में विराजित श्री साधु मार्गी जैन परम्परा के राष्ट्रीय सन्त आचार्य रामेश की आज्ञानुवर्तीनी सुशिष्या पर्यायज्येष्ठा साध्वी चन्द्रकला ने फरमाया कि बनस्पती, पेड़, पौधों में भी जीवन होता है, संवेदनायें होती है। हमारा प्रयास होना चाहिए कि हम पेड़, पौधों को किसी प्रकार का कोई कष्ट नहीं पहुंचाएं। हम सदैव उनके प्रति संवेदनशील रहें । भगवान ने भी कहा है सुख देने से सुख की प्राप्ति होती है, दुःख देने से हमें भी दुःख का सामना करना पड़ता है। आगामी रविवार 1 सितंबर से 8 सितंबर के दौरान पर्युषण महापर्व समता भवन और चौरडिया भवन दोनों ही स्थलों पर समारोहपूर्वक मनाया जाएगा। प्रतिदिन प्रवचन के पश्चात् समता युवा संघ द्वारा धार्मिक परीक्षा का आयोजन भी रखा गया है। प्रवचन का समय दोनों स्थलों पर प्रात: 8.45 बजे का रहेगा। संचालन राकेश चौपड़ा द्वारा किया गया। यह जानकारी संघ के महामंत्री सुरेश सांखला ने दी।
