शिव वर्मा. जोधपुर
मंडोर क्षेत्र में गोपी का बेरा में रावजी ने मालियों के वंश के बारे में सम्पूर्ण जानकारी दी। नरेंद्र गहलोत ने अपने स्वर्गीय पिताजी धर्मसिंहजी के छमासी के अवसर पर राव जी बिठाए। जिन्होंने मालियों के सभी वंशों का आरंभ से आज तक का ज्ञान कराया और
कच्छवाहा, गहलोत, भाटी, टाक , सोलंकी, देवड़ा पंवार, सांखला आदि सभी वंशों के बारे में और उनके कुल देवता और कुल देवियों के बारे में सम्पूर्ण जानकारी दी।
हिंदु धर्म में भाट राजा का महत्वपूर्ण स्थान है
भाट शब्द की उत्पत्ति संस्कृत शब्द भट्ट से हुई है। सभी जातियों के अलग अलग भाट होते है इनके पास अपनी अपनी जाति की पूरी वंशावली होती है, जिसे ये विशेष समय पर या शादी विवाह समारोह के समूह में सादर आमन्त्रित करने पर आकर वंशावली का वाचन करते हैं। भाट राजा को सरस्वती जी का मानस पुत्र कहा गया है,इनकी जिव्हा पर सरस्वती का वास होता है। ये गायक जाती है । इन्हे बैठने के लिए विशेष ऊंचे आसन की व्यवस्था की जाती है। ये जो वंशावली पड़ते हैं उसे पितृ पुराण कहा जाता है,जिसका वाचन सिर्फ भाट राजा ही कर सकते हैं। इस पुराण का अपने आंगन में वाचन करवाने से पितरों का आशीर्वाद प्राप्त होता है ऐसा शास्त्रों में कहा गया है। वंशावली वाचन के बाद इसमें आवश्यक संशोधन और नए नामांकन करवाए जाते हैं। इन्हे ससम्मान भोजन,पूजा भेट दक्षिणा से संतुष्ट किया जाता है।
भाट 3 प्रकार के होते है
1 ब्रह्म भाट – जिनकी उत्पत्ति ब्रह्मा के पुत्र कवि से मानी गई है।
२ वादी भाट – ये राजपूतों के वंश के कहलाते हैं, जो राजपूतों के वंशो का यश व इतिहास का पूरा ब्यौरा रखते हैं।
३– रानीमंगा भाट–ये राजा महाराजाओं की रानियों का इतिहास व वंशो का परिचय रखते हैं।
