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Saturday, April 19, 2025, 5:27 am

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कविता : नाचीज बीकानेरी

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सब कुछ न कुछ मांगे

सारी दुनियां में सारे के सारे, कुछ न कुछ मांगे ।
कोई खुदा से मांगे तो, चाहे कोई बंदों से मांगे।।

कोई मंदिर- मस्जिद – इबादतगाह में जा मांगे ।
कोई घर – घर मांगे , चाहे कोई चौराहे पर मांगे।।

मां – बाप से औलाद, औलाद से मां – बाप मांगे ।
दुनियां में जो पैदा हुवा, वो इक दूजे से कुछ मांगे।।

दौलत वाले बैंक से, व्यापारी चीज के बदले मांगे ।
कोई हाथ कटोरा ले मांगे ,कुछ तगादा कर मांगे ।।

बेरोजगार रोजगार मांगे, कंवारे – कंवारी रिश्ते मांगे ।
भूखा रोटी मांगे ,बीमार दवाई ,मजदूर पगार मांगे ।।

दुनियां सारी अल्लाह-ईश्वर से रहम-करम सब मांगे।
कोई ईश्वर-अल्लाह भला करे, का  नाम ले ले मांगे।।

गरीब जरूरतमंद देने वाले के लिए रब से दुवा मांगे।
इंसान, इंसान से ठरके से ,मूल के बदले ब्याज मांगे।।

अपने मांगे अपनों से, अफसर रिश्वत कमीशन मांगे।
भूखा मांगे समझ में आए, संतरी मंत्री सरेआम मांगे।।

जर्दा-बीड़ी व लिफ्ट मांगे,शादी में लड़का दहेज मांगे।
“नाचीज़” हर शख्स किसी न किसी से कुछ तो मांगे।।

“नाचीज़ बीकानेरी ” मो. 9680868028

Rising Bhaskar
Author: Rising Bhaskar


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