राखी पुरोहित. राजगढ़-चूरू/पिलानी-झुंझुनूं
चूरू जिले के ग्राम तिरपाली स्थित श्री स्वतंत्र योग निकेतन आश्रम में चूरू एवं झुंझुनू जिले के किसान प्रतिनिधियों की बैठक स्वामी ओम पूर्ण स्वतंत्र की अध्यक्षता में संपन्न हुई । जिसमें किसान महापंचायत के जिला अध्यक्ष एवं पूर्व प्रधान बुहाना बजरंग लाल नेहरा, करण सिंह, संत कुमार सिंह, मोहर सिंह नेहरा, हरि सिंह सांगवान, राम सिंह, दयाचंद, रतन सिंह, महावीर पंघाल, कुमारी गुलशन, हरिनंदन सांगवान प्रमुख रूप से उपस्थित रहे ।
इस बैठक का आयोजन राजस्थान के 45,537 गांव बंद आंदोलन के लिए चल रहे जागरण अभियान के क्रम में हुआ। इस जागरण अभियान के संयोजक किसान महापंचायत के प्रदेश मंत्री बत्तीलाल बेरवा ने बताया कि इस बैठक में चुरू जिले के गांव मामराज का वास 29 जनवरी को पूर्ण से बंद रहेगा । इसके साथ ही उपस्थित सभी प्रतिनिधियों ने बड़ी तिरपाली नुहन्द गोविंद सिंह का वास को बंद रखने के लिए गांव वालों से आग्रह करने का संकल्प लिया। इसके अतिरिक्त झुंझुनू जिले के गांव में भी गांव बंद आंदोलन के संबंध में जागरूकता लाई जाएगी।
इस बैठक को किसान महापंचायत के राष्ट्रीय अध्यक्ष रामपाल जाट ने संबोधित करते हुए खेत को पानी एवं फसल को दाम के लिए गांव बंद आंदोलन को सफल बनाने की आवश्यकता प्रतिपादित की। गांव बंद आंदोलन का अभिप्राय स्पष्ट करते हुए बताया कि गांव का व्यक्ति गांव में रहेगा एवं गांव का उत्पादन भी गांव में रहेगा। उसे बेचने के लिए गांव से बाहर नहीं ले जाया जाएगा। किंतु कोई भी व्यक्ति गांव में दूध, फल, सब्जी, अनाज जैसे उत्पादों को क्रय करने के लिए आएंगे तो गांव वाले अपने उत्पाद को बेच सकेंगे । यानि गांव का उत्पादन गांव में बेचने पर कोई रोक नहीं रहेगी। दूसरी ओर रास्ता रोको, रेल रोको या बस, जीप रोको के स्थान पर आपातकालीन स्थिति को छोड़कर स्वयं को रोकने का काम किया जाएगा । इसके अंतर्गत कोई भी व्यक्ति यातायात के साधनों का उपयोग नहीं करेगा। इससे टकराहट की संभावना शून्य हो जाएगी और आंदोलन सत्य, शांति एवं अहिंसा पर आधारित रहेगा। उन्होंने सिंचाई परियोजनाओं को सर्वोच्च प्राथमिकता देने पर जोर दिया। इस प्रकार की नीति का भाव में यमुना जल का समझौता होने के 30 वर्ष उपरांत भी झुंझुनू एवं चूरू जिला सिंचाई के पानी से वंचित है। सिंधु जल समझौते की पालना नहीं होने के कारण देश का पानी पाकिस्तान जा रहा है। वर्ष 1966 के समझौते के अनुसार माही परियोजना का संपूर्ण पानी राजस्थान को प्राप्त नहीं हो रहा है । जबकि वर्ष 2006 में गुजरात के खेड़ा जिले को नर्मदा परियोजना का पानी प्राप्त हो रहा है । इसी प्रकार पूर्वी राजस्थान नहर परियोजना का डीपीआर वर्ष 2017 में बन जाने को उपरांत भी सरकारों द्वारा उसे अटकाने – लटकाने – भटकाने का काम किया जा रहा है. प्रकृति की मार से फसल खराब होने पर भी क्षतिपूर्ति किसानों को प्राप्त नहीं हो रही है। जबकि इस प्रकार की क्षतिपूर्ति के लिए राज्य एवं केंद्र ने आपदा राहत कोष के नियम बनाए हुए हैं। इसके अतिरिक्त प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना भी प्रभाव में है । जिसमें किसानों से प्रीमियम तो शत प्रतिशत वसूल कर लिया जाता है किंतु क्लेम राशि से उन्हें वंचित रहना पड़ता है। इसी प्रकार सरकारों के आयोग संस्था एवं समितियां की अनुशंसा होने के उपरांत भी न्यूनतम समर्थन मूल्य पर कानून नहीं बनाया जा रहा है। जिससे किसानों को अपनी उपज घोषित न्यूनतम समर्थन मूल्य से कम दामों पर घाटा उठाकर बेचनी पड़ रही है । राज्य के 45537 गांव के किसान अपनी इन पीड़ाओं को व्यक्त करने के लिए ही गांव बंद आंदोलन कर रहे हैं।