जरा रुकें
ले आती है
जिंदगी हमें
कई बार
ऐसी जगह
होते हैं जहाँ
दो रास्ते
और, वो भी सूने
नहीं आता कोई भी
राहगीर नज़र
जो बता सके हमें
अपनी मंजिल की राह
तब हमें रुकना पड़ता
मजबूरन
वैसे तो चलना ही
जिंदगी है
मगर
गलत रास्ते पर
न बढ़े कदम
ये सोचने के लिए
कभी-कभी
रूक जाना ही
बेहतर है ।
रचयिता
एडवोकेट एनडी निंबावत “सागर”