Explore

Search

Monday, March 24, 2025, 10:15 pm

Monday, March 24, 2025, 10:15 pm

LATEST NEWS
Lifestyle

सुखी बनने का एक ही मंत्र…सुबको सुख दो, किसी को भी दुख नहीं : संत चंद्रप्रभ

Share This Post

संत्सग का सार : आकाश में गुलाब उछालोगे तो हम पर गुलाब गिरेंगे, राख उछालेंगे तो राख गिरेगी…यानी हम जैसा कर्म करेंगे वैसा ही परिणाम मिलेगा

राखी पुरोहित. जोधपुर

राष्ट्र-संत चंद्रप्रभ महाराज ने कहा है कि अगर हम हाथ में गुलाब के फूल लेकर आकाश में उछालेंगे तो वापस हम पर गुलाब के फूल आकर गिरेंगे और अगर हम हाथ में राख लेकर आकाश में उछालेंगे तो हमारे ऊपर वापस राख ही गिरेगी। यह सिद्धांत हमें समझाता है कि इस दुनिया में हम जैसा करते हैं वैसा ही वापस हमें लौट कर मिलता है। अगर हम दूसरों को दुख और पीड़ा देंगे तो वापस हमें दुख और पीड़ा का किसी न किसी रूप में सामना करना पड़ेगा और अगर हम दूसरों को सुख और सहयोग देते हैं तो हमें वापस सुख लौट कर आएगा। प्रकृति का नियम है कि यहां पर हम जैसा बीज बोते हैं वैसा ही फल कई गुना होकर पैदा होता है। अगर हम भलाई के बीज बोएंगे तो वापस हजार गुना भलाई होकर लौटेगी और बुराई के बीज बोएंगे तो वापस हजार गुना बुराई लौट कर आएगी। इसलिए हमें किसी भी रूप में पाप कर्म नहीं करने चाहिए, बुराई के कामों से बचना चाहिए और भलाई-नेकी और मानवता के रास्ते पर आगे बढ़ना चाहिए यही धर्म का संदेश हर इंसान के लिए है।

संत प्रवर संबोधि धाम में आयोजित सत्संग प्रवचन कार्यक्रम में सैकड़ों भाई बहनों को संबोधित कर रहे थे। उन्होंने कहा कि जब हम मंदिर में जाते हैं तो भगवान के हाथों की मुद्रा आशीर्वाद रूप में नहीं तथास्तु रूप में होती है जिसका मतलब है तू जैसा करेगा मैं तुझे वापस वैसा ही लौटाऊंगा। उन्होंने कहा कि अगर हम जीवन को सुख- शांति के साथ जीना चाहते हैं और उसे आसमान जैसी ऊंचाइयां देना चाहते हैं तो हमें इन पांच बातों को सदा याद रखना चाहिए – 1. मरना अवश्य है। हमें कभी नहीं भूलना चाहिए कि हम एक दिन मरने वाले हैं। इंसान को लगता है कि दूसरे मरेंगे और भूल जाता है कि उसे खुद भी मरना है। हम मारना और मरवाना तो याद रखते हैं पर खुद को मरना है यह भूल जाते हैं। जीवन का कोई भरोसा नहीं है – बेटा बहू की अमानत है, बेटी दामाद की अमानत है और शरीर शमशान की अमानत है। इसलिए हम भले ही संसार में जिएं पर संसार में भी संन्यास के फूल खिला कर रखें, भोग में भी योग का दीप जलाकर रखें।

साथ कुछ नहीं जाने वाला है – दूसरा मंत्र याद रखने की प्रेरणा देते हुए संत प्रवर ने कहा कि हमारे साथ कुछ नहीं जाने वाला है। अरे जब हम जीते जी भी हमारे धन का और हमारी वस्तुओं का पूरा उपयोग नहीं कर पाते हैं तो भला साथ में क्या जाएगा इसलिए इंसान को ज्यादा भागम भाग करने की बजाय सहज जीवन जीना चाहिए। ज्यादा पंपाल नहीं पालने चाहिए और जंजाल में नहीं पड़ना चाहिए।

तीसरे मंत्र के रूप में संत प्रवर ने कहा कि जो करेगा सो भरेगा। हमारे कर्म ही हमें पुरस्कार देते हैं और हमारे कर्म ही हमें दंडित करते हैं इसलिए हमें हमेशा सच्चाई के रास्ते पर कदम बढ़ाने चाहिए । अगर कभी झूठ की स्थिति बन जाए तो चुप रहना चाहिए।
चौथे मंत्र में उन्होंने कहा कि अपेक्षा ही दुख है। हमें कभी किसी से अपेक्षा नहीं रखनी चाहिए क्योंकि अपेक्षा की जब उपेक्षा होती है तो हमें दुख देती है। जैसे शादी के बाद कन्या का दान होता है वैसे ही पुत्र का दान भी कर देना चाहिए ताकि हमारे बुढ़ापे में पुत्र सेवा करें यह भी अपेक्षा ना रहे।

अंतिम मंत्र में संत प्रवर ने कहा कि संतोष ही सुख है। अगर हम यह मंत्र अपना लें कि जो है प्राप्त वही है पर्याप्त, तो हम सदा सुखी रहेंगे नहीं तो जिंदगी भर दौड़ते रहेंगे, भागते रहेंगे और अंत में हमारे हाथ कुछ नहीं आएगा। उन्होंने कहा कि संसार को पाने का, संसार को भोगने का और संसार में नाम-यश कमाने का कोई अंत नहीं है, पर सांसों का अंत जरूर है। सांसों का अंत हो उससे पहले हम अनंत की यात्रा पर अपने कदम बढ़ाएं इसी में हमारा जीवन सार्थक और सफल हो जाएगा। इस अवसर पर डॉ शांतिप्रिय सागर महाराज ने सभी साधक भाई बहनों को शरीर की सुस्ती और रोगों को भगाने के लिए सक्रिय योग का अभ्यास करवाया, मानसिक ऊर्जा को बढ़ाने के लिए प्राणायाम का प्रयोग करवाया और आत्म साक्षात्कार के लिए संबोधि ध्यान की क्रिया करवाई जिसे करके सभी साधकों के चेहरे खिल उठे। कार्यक्रम में मंच संचालन संपत सेन और आभार विनोद प्रजापत ने दिया।

Rising Bhaskar
Author: Rising Bhaskar


Share This Post

Leave a Comment