-दलबदलू मौकापरस्त मानवेंद्रसिंह जैसलमेर सीट से जता रहे हैं दावेदारी, जबकि पिछले पांच साल में जैसलमेर की जनता के हाल-चाल पूछने तक नहीं आए, जबकि रूपाराम और अंजना मेघवाल जैसलमेर की जनता के दुख-सुख में हमेशा साथ खड़े रहे हैं
-मानवेंद्र का इतिहास रहा है कि कभी भाजपा के साथ तो कभी कांग्रेस के साथ। शिव से लड़े, झालरापाटन से वसुंधरा से हारे और अब दाल नहीं गली तो जैसलमेर की ओर रुख किया
-अगर कांग्रेस ने रूपाराम या अंजना की अनदेखी की तो जैसलमेर और पोकरण दोनों सीटें भाजपा की झोली में जाना तय
-गाजी फकीर की मौत के बाद फकीर परिवार की अब नहीं चलने वाली, अगर रूपाराम या अंजना में से किसी को जैसलमेर से टिकट नहीं मिली तो शालेह मोहम्मद की हार भी तय, राजपूत-मुस्लिम गठबंधन के भरोसे रहना कांग्रेस की भूल साबित होगी
-जैसलमेर और पोकरण में भाजपा की स्थिति फिलहाल मजबूत, सारा खेल टिकट पर निर्भर रहेगा, रूपाराम और अंजना मेघवाल केवल दलितों की नहीं छत्तीस कौम के नेता
-सुनीता भाटी का भी पोकरण से दावा, नए समीकरण ये भी बन सकते हैं कि पोकरण से सुनीता भाटी को टिकट मिले और जैसलमेर से रूपाराम या अंजना मेघवाल में से किसी एक को टिकट मिले
डीके पुरोहित. जैसलमेर
इस बार जैसलमेर और पोकरण विधानसभा के मुकाबले रोचक होंगे। भाजपा की स्थिति फिलहाल मजबूत नजर आ रही है। क्योंकि कांग्रेस की जरा सी लापरवाही सारा खेल बिगाड़ सकती है। मानवेंद्र सिंह इस बार जैसलमेर से कांग्रेस से उम्मीदवारी जता रहे हैं। मानवेंद्रसिंह का इतिहास रहा है कि कभी उन्होंने भाजपा का दामन थामा और कभी कांग्रेस का। वैसे भी वे पैराशूट उम्मीदवार है। वे फकीर परिवार के भरोसे अपने वैतरणी पार लगाना चाहते हैं। गाजी फकीर की मौत के बाद वैसे भी फकीर परिवार का दबदबा कम हो गया है और पोकरण की जनता शालेह मोहम्मद को पसंद भी नहीं करती। ऐसे में जैसलमेर से मानवेंद्रसिंह और पोकरण से कांग्रेस ने शालेह मोहम्मद को टिकट दी तो तो दोनों का हारना तय है। शालेह मोहम्मद की अशोक गहलाेत से नजदीकियां है तो वे टिकट ला सकते हैं और अगर जैसलमेर से मानवेंद्रसिंह को टिकट मिली और रूपाराम या अंजना मेघवाल में से किसी की टिकट कटी तो मानवेंद्रसिंह और शालेह मोहम्मद दोनों का हारना तय है और दोनों सीटें भाजपा की झोली में जा सकती है।
हाल ही में रूपाराम मेघवाल को कांग्रेस ने स्ट्रेटेजिक कमेटी में सदस्य बनाया है। यह अच्छी बात है। मगर रेवड़ी बांटने से कुछ नहीं होगा। कांग्रेस को जमीनी हकीकत देखना होगा। समीकरण रूपाराम और अंजना मेघवाल के पक्ष में हैं। रूपाराम एक बार हारे हुए और वर्तमान में एमएलए है। शालेह मोहम्मद भी वर्तमान में एमएलएम और मंत्री है। शालेह मोहम्मद ने इस बार पाला बदल दिया है और मानवेंद्रसिंह की पूंछ बने घूम रहे हैं। यह मौकापरस्ती उन्हें और मानवेंद्रसिंह के साथ कांग्रेस को भी ले डूबेगी। अब रूपाराम और अंजना मेघवाल केवल दलितों के नेता नहीं हैं। वे छत्तीस कौम के नेता हैं। दोनों जैसलमेर की जनता में दुख-सुख के साथी रहे हैं। दोनों जमीन से जुड़े नेता हैं। दोनों ने जैसलमेर विधानसभा क्षेत्र में खूब मेहनत की है। पसीना बहाया है। हर सार्वजनिक कार्यक्रमों में दोनों की बराबर उपस्थिति रही है। रूपाराम ने हमेशा कांग्रेस में सर्वजाति के लोगों को आगे लाने में भूमिका निभाई। वे कांग्रेस जिलाध्यक्ष उम्मेदिसिंह तंवर और शहर अध्यक्ष धर्मेंद्र आचार्य के भी नजदीक हैं। जबकि अगर मानवेंद्रसिंह को टिकट दी गई तो रावणा राजपूत समाज और ब्राह्मण समाज कांग्रेस के खिलाफ हाे जाएगा। अब वो जमाना नहीं है कि दलितों की उपेक्षा की जाए। वो भी तब जब दलित नेताओं ने अपने को साबित किया है। पिछले कई सालों से रूपाराम और अंजना मेघवाल ने तपस्या की है। अंजना मेघवाल जिला प्रमुख रह चुकी है और वर्तमान में जिला परिषद सदस्य और राज्य मानवाधिकार आयोग की सदस्य हैं। अंजना मेघवाल का सरल सौम्य और आम पब्लिक का हितैषी व्यवहार ही उनकी पहचान है। उन्हें कभी सीट का घमंड नहीं रहा। रूपाराम मेघवाल को भी कभी सीट का घमंड नहीं रहा। दोनों हमेशा लोगों के सुख-दुख में भागीदार रहे। एमएलए रहते हुए रूपाराम ने शहर के लिए काफी काम किए।ऐसे में कांग्रेस अगर दोनों में से किसी की उपेक्षा कर मानवेंद्रसिंह और शालेह मोहम्मद को टिकट देकर जीत का समीकरण बिठाती है तो यह बड़ी राजनीतिक भूल होगी। ऐसे में कांग्रेस के लिए अच्छा यही होगा कि जैसलमेर से रूपाराम और अंजना मेघवाल में से किसी एक को टिकट दे और पोकरण से सुनीता भाटी को टिकट दे। क्योंकि इस बार पोकरण में समीकरण शालेह मोहम्मद के खिलाफ है। जबकि जैसलमेर में माहौल रूपाराम और अंजना मेघवाल के पक्ष में हैं। मानवेंद्रसिंह अपनी टांग फंसाते हैं तो कांग्रेस के लिए आत्मघाती होगा और जैसलमेर और पोकरण दोनों सीटें कांग्रेस के हाथ से निकल जाएगी। ऐसे में समीकरण यह भी बन रहे हैं कि रूपाराम और अंजना मेघवाल में से कोई एक जैसलमेर से निर्दलीय और सुनीता भाटी पोकरण से निर्दलीय चुनाव लड़ सकते हैं। इस बार समीकरण शालेह मोहम्मद के खिलाफ है। इसलिए अगर कांग्रेस को जीतना है तो पोकरण से सुनीता भाटी और जैसलमेर से रूपाराम या अंजना मेघवाल में से किसी एक को टिकट देना ही होगा। शालेह मोहम्मद की अशोक गहलोत से कितनी ही नजदीकियां हो लेकिन गहलोत ने जरा सी लापरवाही की तो जैसलमेर और पोकरण दोनों सीटें कांग्रेस के हाथ से निकल जाएगी।
भाजपा की स्थिति फिलहाल मजबूत
इस बार भाजपा का गणित है कि जैसलमेर से छोटूसिंह या सांगसिंह भाटी में से किसी एक को टिकट देना और पोकरण से ब्राह्मण उम्मीदवार को टिकट देना है। अगर यह गणित सफल रहा तो दोनों सीटें भाजपा की झोली में आ सकती है। छोटूसिंह को आरएसएस भी पसंद करता है और छोटूसिंह के प्रति जैसलमेर की जनता की नाराजगी भी नहीं है। छोटूसिंह राजपूतों के सर्वमान्य नेता है। उनकी छवि जैसलमेर में सरल-सौम्य और लिबरल नेता की है। छाेटूसिंह ने दो बार एमएलए रहते हुए जनता के दुख-सुख में साथ रहे हैं और वे भी हर सार्वजनिक समारोह में बराबर उपस्थित रखते आए हैं। ऐसे में जैसलमेर की जनता में छोटूसिंह के प्रति नाराजगी भी नहीं है। छाेटूसिंह भी छत्तीस कौम के नेता है। छोटूसिंह की आम पब्लिक हितैषी छवि उन्हें विक्टर उम्मीदवार बनाती है। ऐसे में अगर जैसलमेर से भाजपा छोटूसिंह को और पोकरण से किसी ब्राह्मण उम्मीदवार को टिकट देती है तो दोनों सीटें भाजपा की झोली में आ सकती है।
जैसलमेर की जनता करे पुकार, रूपाराम या अंजना मेघवाल ही हो उम्मीदवार
इस बार जैसलमेर की जनता चाहती है कि जैसलमेर से रूपाराम या अंजना मेघवाल में से ही कोई उम्मीदवार हो। अब देखना यह है कि कांग्रेस किसको टिकट देती है। कांग्रेस की यह परंपरा रही है कि वह मुस्लिम पक्ष में झुकाव ज्यादा रखती है। जोधपुर में सूरसागर सीट से उसका खामियाजा वह हर बार भुगत चुकी है। यही हाल अब पोकरण का होने वाला है। अगर पोकरण से भी इस बार शालेह मोहम्मद को टिकट मिलती है तो उनकी हार तय है। सारा समीकरण शालेह मोहम्मद के खिलाफ है। अशोक गहलोत अगर रिश्तों को तवज्जो देते हैं तो उन्हें जैसलमेर और पोकरण दोनों सीटें गंवाने के लिए तैयार रहना होगा। अगर जैसलमेर और पोकरण दोनों सीटें जीतनी है तो पोकरण से सुनीता भाटी और जैसलमेर से रूपाराम या अंजना मेघवाल में से किसी एक को टिकट देना ही होगा।
जैसलमेर से अब तक विधायक
1952-हड़वंत सिंह-निर्दलीय
1957-हुकमसिंह-निर्दलीय
1962-हुकमसिंह-कांग्रेस
1967-बालसिंह सोढ़ा-स्वतंत्र पार्टी
1972-भोपालसिंह-कांग्रेस
1977-किशनसिंह भाटी-जनता पार्टी
1980-चंद्रवीरसिंह-भाजपा
1985-मुल्तानाराम बारूपाल-निर्दलीय
1990-डॉ. जितेंद्रसिंह-जनता दल
1993-गुलाबसिंह रावलोत-भाजपा
1998-गोरधन कल्ला-कांग्रेस
2003-सांगसिंह भाटी-भाजपा
2008-छाेटूसिंह भाटी-भाजपा
2013-छोटूसिंह भाटी-भाजपा
2018-रूपाराम मेघवाल-कांग्रेस