-हर गलती कीमत मांगती है…ये गहलोत ने कहा था, गलती कहां हुई, सचिन की अनदेखी कर या अति उत्साह…अपनी उपलब्धियों और कल्याणकारी योजनाओं पर भरोसा था मगर टीम में ऊर्जा नहीं भर पाए। वही विधायक-घिसे पिटे मंत्रियों को टिकट बांट दिए। बीडी कल्ला सरीखे नेताओं को टिकट बांट दिए जिन्हें नहीं दिए जाते तो कोई फर्क नहीं पड़ता। सूरसागर में यह जानते हुए कि मुस्लिम कैंडिटेट का जीतना असंभव है फिर भी टिकट दिया, सालेह मोहम्मद की हार तय थी, फिर भी टिकट दिया…कई गलतियां हैं, कई निर्णय है जो उन्हें अब पछताने का मौका भी नहीं देंगे, क्योंकि यही पांच साल उनके पास ऊर्जा से भरे थे और वे चाहते तो वापसी कर सकते थे…अब पछताय होत क्या जब चिड़िया चुग गई खेत…देखना यह है कि गहलोत जंग 2023 में सिकंदर बनेंगे या बहादुर शाह जफर…संभावना दूसरे की ज्यादा बनती है…। नरेंद्र मोदी ने भविष्यवाणी की थी लिख लीजिए गहलोत सरकार इस बार नहीं बनेगी और कभी नहीं बनेगी…यह भविष्वाणी सही होती नजर आ रही है…।
डीके पुरोहित. जोधपुर
अभी 3 दिसंबर तक चुनावी नतीजों का इंतजार करना पड़ेगा। लेकिन अब कांग्रेस के लिए आत्म मंथन का समय है। गहलोत के लिए अब कोई मौका नहीं है। इस जंग में अगर कांग्रेस को बहुत मिलता है तो वे सिकंदर होंगे नहीं तो राजस्थान में गहलोत कांग्रेस युग के लिए वे बहादुर शाह जफर साबित होंगे। उनके लिए उठने का राजस्थान में अब कोई मौका नहीं है। उनकी उम्र हो रही है। ये पांच साल उनके पास ऊर्जा से भरे थे। उनकी नीतियां अच्छी थी। कार्य भी अच्छे थे। योजनाएं भी अच्छी थी। मगर जैसा कि वे खुद कहते आए हैं- हर गलती कीमत मांगती है। उनकी गलतियां ही उन पर भारी पड़ने वाली है। एक नहीं कई गलतियां। इस चुनाव को उन्होंने हल्के में लिया। टिकटों की घोषणा बहुत देरी से हुई। पायलट को मनाने में देरी हुई। पायलट की एक तरह से अनदेखी ही की गई। विज्ञापनों में पायलट का चेहरा गायब ही रहा। यह चुनाव गहलोत के नेतृत्व में लड़ा गया और इस हार-जीत के जिम्मेदार अकेले गहलोत होंगे। गांधी परिवार के राहुल तो राष्ट्रीय स्तर पर कांग्रेस को डुबाने का काम कर रहे हैं और राजस्थान में अशोक गहलोत ने कांग्रेस का कबाड़ा कर दिया है। यह बात तब साबित हो ही जाएगी जब तीन दिसंबर को परिणाम आएंगे। ऐसा नहीं है कि गहलोत ने राजस्थान के लिए कुछ नहीं किया। बहुत कुछ किया। मगर कई निर्णय ऐसे हैं जो उन्हें विजेता नहीं बना सकते।
विजेता बनने के लिए जुनून चाहिए। अंतिम समय तक जीतने का जुनून। जीत हार के लिए यह नहीं देखा जाता कि कौन सिपाही नाराज होगा। कौन मंत्री रूठ जाएगा। जीतने के लिए सिर्फ जीतने का जज्बा ही होना काफी है। सिकंदर ने दुनिया काे जीतने का सपना देखा। उन्होंने तलवार से बात की। उनकी निगाह सिर्फ जीत पर थी। अकेले दम पर वे दुनिया को जीतने निकले। उसका मकसद था। एक सपना था। उसे मौत का भय नहीं था। हारने का उसने सपने में भी नहीं सोचा था। और जीतता चला गया। बढ़ता ही गया। जुनून के हद तक और दुनिया को करीब-करीब जीत ही लिया था। सिकंदर इसलिए दुनिया में अमर हो गया क्योंकि वह सिकंदर था। हर कोई सिकंदर नहीं हो सकता। राजनीति में सिकंदर वही बनता है जो हारने की सोचता नहीं। इस मामले में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी हमारे आदर्श हो सकते हैं। अभी बात सिर्फ गहलोत की कर रहे हैं। भाजपा ने जहां इनोवेशन किया। रिस्क लिया। सीटों का गणित देखा। नए चेहरे उतारे। अंतिम समय में वसुंधरा को मनाया। सब नेताओं को अपनी अपनी भूमिका दी। यहां तो अशोक गहलोत ही दौड़ते दिखे। एक अकेला दौड़ता गया। उसे अपनी योजनाओं पर भरोसा था। अपने कार्यों पर भरोसा था। राजनीति कार्यों पर नहीं चलती। कई मुस्लिम राजाओं के कार्य जनता के हित में कभी नहीं रहे। लेकिन वे जीतते गए क्योंकि जीतना ही उनकी मंजिल थी। अशोक गहलोत इस जंग में जीतते हैं तो यह अलग बात होगी। यदि परिणाम विपरीत आते हैं तो इस हार के जिम्मेदार भी एक मात्र वे खुद होंगे। वे ही राजस्थान में अपने युग के बहादुर शाह जफर साबित होंगे। दुनिया उगते सूरज को सलाम करती है। सिकंदर बनने के लक्षण तो पहले दिन से ही गहलोत ने नहीं दिखाए। इस चुनाव में कोई इनोवेशन दिखाया ही नहीं। कोई जोड़ तोड़ की गणित बिठाई ही नहीं। कोई आक्रामकता दिखाई ही नहीं। टिकटों का वितरण भी पता नहीं क्या सोच कर किया। ऐसे चेहरों को टिकट दिया जिनसे जनता भयंकर नाराज थी। जिनका रिपोर्ट कार्ड अच्छा नहीं था। सिर्फ इस आधार पर टिकट दिए गए कि वे उनके खेमे के है। उनकी सरकार बचाने में वफादार रहे। उनके गुट के हैं। वे विधायक हैं। वे मंत्री हैं। किसी की टिकट काटने की हिम्मत नहीं दिखाई। घिसे पिटे चेहरे देखकर जनता ने क्या किया यह तो तीन दिसंबर तय करेगी। मगर इस होम में आहुति 25 नवंबर को पड़ चुकी है। धुआं उठा चुका है। बादल छा चुके हैं। तीन दिसंबर को तो केवल बरसात होने वाली है। यह बरसात किस पार्टी के लिए फायदेमंद होगी और किसके लिए नुकसानदायक। यह आने वाला वक्त तय करेगा। जिस तरह बरसात किसी फसल के लिए फायदेमंद होती है और किसी फसल के लिए नुकसानदायक। वैसे ही तीन दिसंबर की बरसात के परिणाम दिशा तय करने वाले हैं।
अभी हम सिर्फ अनुमान लगा सकते हैं। लेकिन वोटर ने अपना काम कर दिया है। गहलोत युग के लिए एक संदेश जनता दे चुकी है। राज बदलेगा या रिवाज…। यह नारा खूब चला। गहलोत कहते आए हैं कि इस बार रिवाज बदलेगा। उनकी पार्टी रिपीट होगी। लेकिन उन्होंने इसकी तैयारी पूरी तरह से नहीं की। टिकटों के वितरण में ही इतनी देर कर दी कि भाजपा उससे कई तरह से आगे निकल गई। उन्होंने नाम देखे। उनका कद देखा। लेकिन जन भावना नहीं देखी। क्या सोच कर टिकट दिए वे ही जाने। इस बार के चुनाव का ठीकरा सिर्फ और सिर्फ उनके सिर ही फूटने वाला है। कांग्रेस की नैया के वे ही खेवनहार थे। पायलट तो कहीं पिक्चर में ही नहीं थे। न चेहरा थे और न ही मुख्य भूमिका। उन्हें तो कांग्रेस में बना रहना था और बने रहे। बाकी वे मन से चुनाव में जुटे भी नहीं थे। ये चुनाव गहलोत की राजनीति की आगे की दिशा तय करेंगे। या तो गहलोत युग लंबा चलेगा या फिर वे बहादुर शाह जफर साबित होंगे।
