-संत पंकजप्रभु ने धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष नामक चार पुरुषार्थ की थ्योरी का नया रूप दिया, अध्यात्म में जुड़ा एक नया अध्याय
डीके पुरोहित. जोधपुर
संसार के अध्यात्म में उस समय नया अध्याय जुड़ गया जब रहस्यमयी संत पंकजप्रभु महाराज ने खुलासा किया कि संसार में केवल दो प्रकार के ही पुरुषार्थ होते हैं- व्यक्त पुरुषार्थ और अव्यक्त पुरुषार्थ। ये खुलासा उन्होंने अपने चातुर्मास के नित्य प्रवचन में शुक्रवार को किया। उन्होंने कहा कि पृथ्वी के शास्त्रों में जो चार पुरुषार्थ कहे गए हैं- धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष उसमें संसोधन करने की जरूरत है। उन्होंने अपने प्रवचन में जो कहा उस पर एक नजर-
हे मानव अभी तुमने शास्त्रों के अनुसार चार पुरुषार्थ धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष के बारे में जाना। अब सुनो हमारी साधना चक्षुओं से हमने केवल दो पुरुषार्थ का अनुभव किया है। और दो पुरुषार्थ है व्यक्त पुरुषार्थ और अव्यक्त पुरुषार्थ। व्यक्त पुरुषार्थ में ब्रह्मचर्य, गृहस्थ, वानप्रस्थ और संन्यास आश्रम के सभी कार्य समाहित होते हैं। जिसे तुम्हारे ऋषियों ने आश्रम कहा है वे सभी हमारी नजर में व्यक्त पुरुषार्थ ही है। अब है अव्यक्त पुरुषार्थ। इस अव्यक्त पुरुषार्थ में ही असली पुरुषार्थ छिपा है। श्रीकृष्ण ही अव्यक्त पुरुषार्थ है। जब अव्यक्त व्यक्त में तब्दिल होता है तो ब्रह्मचर्य, गृहस्थ, वानप्रस्थ और संन्यास आश्रम के लोग इसमें समाहित हो जाते हैं। एक ऋषि ब्रह्मचारी भी हो सकता है और गृहस्थ भी। संसार के समस्त जीव व्यक्त पुरुषार्थ की श्रेणी में आते हैं। केवल श्रीकृष्ण ही अव्यक्त पुरुषार्थ की श्रेणी में आते हैं। इसे अवचेतन सत्ता कहते हैं। इस अवचेतन सत्ता में चेतन हमेशा छिपा रहता है। हे मानव इस जगत में केवल दो ही पुरुषार्थ है- व्यक्त पुरुषार्थ और अव्यक्त पुरुषार्थ। शरीर व्यक्त पुरुषार्थ है और आत्मा अव्यक्त पुरुषार्थ है। आत्मा और वीर्य में अंतर है। वीर्य केवल व्यक्त पुरुषार्थ का एक पार्ट है और आत्मा अव्यक्त पुरुषार्थ का एक पार्ट है। जो दो तरह के पुरुषार्थ मैंने कहे हैं व्यक्त पुरुषार्थ और अव्यक्त पुरुषार्थ दरअसल श्रीकृष्ण अव्यक्त पुरुषार्थ का पर्याय हैं। जब श्रीकृष्ण अवतरित होते हैं तो वे व्यक्त पुरुषार्थ में कन्वर्ट हो जाते हैं। इसलिए हे मानव दुनिया के सारे धर्मों और अध्यात्म को मैं बता देना चाहता हूं कि केवल दो ही पुरुषार्थ होते हैं- व्यक्त पुरुषार्थ और अव्यक्त पुरुषार्थ। आज से पहले यह बात किसी ऋषि ने नहीं कही होगी। हे मानव तुम्हारे सारे शास्त्रों में चार पुरुषार्थ कहे गए हैं। लेकिन हकीकत में दो ही पुरुषार्थ होते हैं और वे हैं व्यक्त पुरुषार्थ और अव्यक्त पुरुषार्थ। इसे ही मैं चेतन और अवचेतन पुरुषार्थ कहता हूं। इसलिए संसार के प्राणी हमेशा व्यक्त पुरुषार्थ में जीवन भर लगे रहते हैं। मगर श्रीकृष्ण अव्यक्त पुरुषार्थ में रहते हैं। जब-जब श्रीकृष्ण व्यक्त होते हैं तो वे धरती पर व्यक्त पुरुषार्थ की लीला करते हैं। यही पुरुषार्थ का असली अर्थ है। दूसरे शब्दों में कहें तो संसार व्यक्त पुरुषार्थ है और श्रीकृष्ण अव्यक्त पुरुषार्थ है। पुरुषार्थ के बारे में आज इतना ही।
