राजेश मोहता की कविता
तप मैं संघर्षों के काल में तप करता हूं हालांकि लोग इसे आदिकालीन मूर्खता कहेंगे पर फिर भी यह जरूरी है कि मैं सच की धूनी रमाऊं जलती गिरती सभ्यता की राख को भभूत की तरह अपने शरीर पर मलूं। और भी जरूरी है कि मैं संघर्षों की निरर्थकता से निकल कर हारा हुआ रणछोड़दास … Read more